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श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला कमल जैसे जल और पंक में रहता हुआ भी उन से सर्वथा पृथक् रहता है । उसी प्रकार साधु मंमार में रहता हुआ भी निर्लिप्त रहता है।
सूर्य जसे मब पदार्थों को मम भाव से प्रकाशित करता है। उमी प्रकार माधु भी धर्मास्तिकायादि रूप लोक का समान रूप से ज्ञान द्वारा प्रकाशन करता है।
जैसे पवन अप्रतिबन्ध गति वाला है । उसी प्रकार माधु भी मोह ममता से दूर रहता हुआ अप्रतिबन्ध विहारी होता है।
(अभिधान राजेन्द्र कोप भाग ६)
('समण' शब्द पृष्ठ ४०४ ) (दशवीकालिक अध्ययन २ टीका पृष्ठ ८)
(आगमोदय समिति) (निशीथ गाथा १५४-१५७)
(अनुयोगद्वार सामायिक अधिकार ) १७६-चार प्रकार का संयम
(१) मन संयम (२) वचन संयम (३) काया संयम । (४) उपकरण मंयम ।
मन, वचन, काया के अशुभ व्यापार का निरोध करना और उन्हें शुभ व्यापार में प्रवृत्त करना मन, वचन और काया का संयम है । बहुमूल्य वस्त्र आदि उपकरणों का परिहार करना उपकरण संयम है।
(ठाणांग ४ उद्देशा २ सूत्र ३१०)