________________
श्री जैन सिद्धान बोल संग्रह
१२६ नियमपूर्वक न हो अर्थात् कभी हो और कभी न हो । वह चौथे मेघ के समान है।
दान के लिए भी यही बात है । एक ही बार दान देकर हमेशा के लिए याचक के दारिद्रय को दूर करने वाला दाता प्रथम मेघ सदृश है। उससे कम शक्ति वाले दूसरे और तीसरे मेघ के समान हैं। किन्तु जिसके अनेक बार दान देने पर भी थोड़े काल के लिए भी अर्थी (याचक) की आवश्यकताएं नियमपूर्वक पूरी न हो ऐसा दानी जिह्म मेघ के समान है।
(ठाणांग ४ उहेशा ४ सूत्र ३४७ ) १७४(ख):-अन्य प्रकार से मेघ के चार भेदः
(१) कोई मेघ क्षेत्र में बरसता है, अक्षेत्र में नहीं बरसता । (२) कोई मेघ क्षेत्र में नहीं बरसता, अक्षेत्र में बरसता । (३) कोई मेघ क्षेत्र और अक्षेत्र दोनों में बरसता है। (४) कोई मेघ क्षेत्र और अक्षेत्र दोनों में ही नहीं बरमता ।
(ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३४६) १७५-मेघ की उपमा से चार दानी पुरुप(१) कोई पुरुष पात्र को दान देते हैं । पर कुपात्र को नहीं
देते। (२) कोई पुरुष पात्र को तो दान नहीं देते, पर कुपात्र को
देते हैं। (३) कोई पुरुष पात्र और कुपात्र दोनों को दान देते हैं ।