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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(४) कोई पुरुष पात्र और कुपात्र दोनों को हो दान नहीं
देते हैं ।
( ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३४६ )
१७६ - प्रव्रज्या प्राप्त पुरुषों के चार प्रकार:
(१) कोई पुरूष सिंह की तरह उन्नत भावों से दीक्षा लेकर सिंह की तरह ही उग्र विहार आदि द्वारा उसे पालते हैं।
(२) कोई पुरुष सिंह की तरह उन्नत भावों से दीक्षा लेकर
शृगाल की तरह दीन वृत्ति से उसका पालन करते हैं । (३) कोई पुरुष शृगाल की तरह दीन वृत्ति से दीक्षा लेकर सिंह की तरह उग्र विहार आदि द्वारा उसे पालते हैं । (४) कोई पुरुष शृगाल की तरह दीन वृत्ति ले दीक्षा लेकर शृगाल की तरह दीन वृत्ति से ही उसका पालन करते हैं ।
( ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३२७ )
१७७ - तीर्थ की व्याख्या और उसके भेद:
सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यम्चारित्र आदि गुण रत्नों को धारण करने वाले प्राणी समूह को तीर्थ कहते हैं । तीर्थ ज्ञान, दर्शन, चारित्र द्वारा संसार समुद्र से जीवों को तिराने वाला है । इस लिए इसे तीर्थ कहते है तीर्थ के चार प्रकार:
यह
(१) साधु ।
, (३) श्रावक ।
(२) साध्वी ।
(४) श्राविका ।