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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
अथवा:क्रोध के विपाक को जानते हुए जो क्रोध किया जाता है
वह आभोग निवर्तित क्रोध है। अनाभोग निवर्तिनः--जब कोई पुरुष यों ही गुण दोष का
विचार किये विना परवश होकर क्रोध कर बैठता है। अथवा क्रोध के विपाक को न जानते हुए क्रोध करता है तो उस
का क्रोध अनाभोग निवर्तित क्रोध है । उपशान्तः-जो क्रोध सत्ता में हो, लेकिन उदयावस्था में न हो
वह उपशान्त क्रोध है। अनुपशान्तः-उदयावस्था में रहा हुआ क्रोध अनुपशान्त
क्रोध है। इसी प्रकार माया, मान, और लोभ के भी चार चार भेद हैं ।
(ठाणांग ४ उद्देशा सूत्र २४६) १६५:--क्रोध की उत्पति के चार स्थानः--चार कारणों से
क्रोध की उत्पति होती है। (१) क्षेत्र अर्थात् नैरिये आदि का अपना अपना उत्पत्ति स्थान । (२) मचेतनादि वस्तु अथवा वास्तुघर । (३) शरीर । (४) उपकरण।
इन्हीं चार बोलों का प्राश्रय लेकर मान, माया, और लोभ की भी उत्पत्ति होती है।
(ठाणांग ४ सूत्र २४६)