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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १६६-कषाय की ऐहिक हानियाँ
क्रोध आदि चार कषाय संसार के मूल का सिंचन करने वाले हैं। इन के सेवन से जीव को ऐहिक और पारलौकिक अनेक दुःख होते हैं। यहाँ ऐहिक हानियाँ बताई जाती हैं।
क्रोध प्रीति को नष्ट करता है। मान विनय का नाश करता है। माया मित्रता का नाश करने वाली है । लोभ उपरोक्त प्रीति, विनय और मित्रता सभी को नष्ट करने वाला है।
(दशवै कालिक अध्ययन ८ गाथा ३८) १६७-कपाय जीतने के चार उपाय
(१) क्रोध को शान्ति और क्षमा द्वारा निष्फल करके दया देना चाहिए। (२) मृदुता, कोमल वृत्ति द्वारा मान पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। (३) ऋजुता-सरल भाव से माया का मर्दन करना चाहिए। (४) सन्तोष रूपी शस्त्र से लोभ को जीतना चाहिए।
(दश कालिक अध्ययन ८ गाथा ३६) १६८-कुम्भ की चौभङ्गी
(१) मधु कुम्भ मधु पिधान (२) मधु कुम्भ विष पिधान (३) विष कुम्भ मधु पिधान (४) विष कुम्भ विष पिधान (१) मधु कुम्भ मधु पिधानः-एक कुंभ (घड़ा) मधु से भरा हुआ होता है । और मधु के ही ढकने वाला होता है। (२) मधु कुम्भ विष पिधानः-एक कुम्भ मधु से भरा