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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
११५ स्वरूप बता कर बैराग्य पैदा करने वाली कथा इहलोक
संवेगनी कथा है। (२) परलोक मंवेगनी:-देवता भी ईर्षा, विषाद, भय, वियोग
आदि विविध दुःखों से दुःखी हैं । इत्यादि रूप से परलोक का स्वरूप बता कर वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा
परलोक संवेगनी कथा है। (३) स्वशरीर संवेगनी:-यह शरीर स्वयं अशुचि रूप है ।
अशुचि से उत्पन्न हुआ है। अशुचि विषयों से पोषित हुआ है। अशुचि से भरा है। और अशुचि परम्परा का कारण है । इत्यादि रूप से मानव शरीर के स्वरूप को बता कर वैराग्य भाव उत्पन्न करने वाली कथा स्वशरीर संवेगनी
कथा है। (४) पर शरीर मंवेगनी:--किसी मुर्दे शरीर के स्वरूप का कथन
कर वैराग्य भाव दिखाने वाली कथा पर शरीर संवेगनी
कथा है। नोट:-इमी कथा का नाम संवेजनी और संवेदनी भी है ।
संवेजनी का अर्थ संवेगनी के समान ही है। संवेदनी का अर्थ है ऊपर लिखी बातों से इहलोकादि वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कराना ।
(ठाणांग ४ सूत्र २८२) १५७-निवेदनी कथा की व्याख्या और भेदः
___ इहलोक और परलोक में पाप, पुण्य के शुभाशुभ फल को बता कर संसार से उदासीनता उत्पन्न कराने वाली कथा निवेदनी कथा है।