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श्री संठिया जैन प्रन्थमाला (१) इस लोक में किये हुए दुष्ट कर्म, इमी भव में दुःख
रूप फल देने वाले होते हैं। जैसे चोरी, पर स्त्री गमन
आदि दुष्ट कर्म । इसी प्रकार इस लोक में किये हुए मुकृत इमी भव में मुख रूप फल देने वाले होते हैं । जैसे तीर्थकर भगवान को दान देने वाले पुरुष को मुवर्णवृष्टि आदि सुख
रूप फल यहीं मिलता है । यह पहलो निवेदनी कथा है । (२) इस लोक में किये हुए दुष्ट कम पग्लोक में दुःख
रूप फल देते हैं। जैसे महारम्भ, महा-परिग्रह आदि नग्क योग्य अशुभ कर्म करने वाले जीव को परभव अर्थान् नरक में अपने किये हुए दुष्ट कर्मों का फल भोगना पड़ता है। इसी प्रकार इस भव में किये हुए शुभ कार्यों का फल परलोक में सुख रूप फल देने वाला होता है। जैसे मुमाधु इस लोक में पाले हुए निरतिचार चारित्र का मुख रूप फल
परलोक में पाते हैं । यह दूसरी निर्वेदनो कथा है। (३) परलोक ( पूर्वभव ) में किये हुए अशुभ कर्म इस भव में
दुःख रूप फल देते हैं। जैसे परलोक में किये हुए अशुभ कर्म के फल स्वरूप जीव इम लोक में हीन कुल में उत्पन्न होकर बालपन से ही कुठ (कोढ़) आदि दुष्ट रोगों से पीड़ित और दारिद्य से अभिभूत देखे जाते हैं । इसी प्रकार पग्लोक में किये हुए शुभ कर्म इस भव में मुखरूप फल देने वाले होते हैं। जैसे पूर्व भव में शुभ कर्म करने वाले जीव इम भव में तीर्थंकर रूप से जन्म लेकर मुखरूप फल पाने हैं । यह तीसरी निर्वेदनी कथा है।