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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
बता कर नास्तिकवादी का अभिप्राय बतलाना तृतीय विक्षेपण कथा है ।
(४) पर - सिद्धान्त में कहे हुए जिनागम विपरीत मिथ्यावाद का कथन कर, जिनागम सदृश बातों का वर्णन करना अथवा नास्तिकवादी की दृष्टि का वर्णन कर आस्तिक वादी की दृष्टि को बताना चौथी विक्षेपणी कथा है ।
क्षेपणी कथा से सम्यक्त्व लाभ के पश्चात् ही शिष्य को विक्षेपणी कथा कहनी चाहिए । विक्षेपणी कथा से सम्यक्त्व लाभ की भजना है । अनुकूल रीति से ग्रहण करने पर शिष्य का सम्यक्त्व दृढ़ भी हो सकता है | परन्तु यदि शिष्य को मिथ्याभिनिवेश हो तो वह पर- समय ( पर - सिद्धान्त ) के दोषों को न समझ कर गुरु को परसिद्धान्त का निन्दक समझ सकता है । और इस प्रकार इस कथा से विपरीत असर होने की सम्भावना भी रहती है । ( ठाणांग ४ सूत्र २८२ )
( दशवैकालिक अध्ययन ३ की टीका )
१५६ - संवेगनी कथा की व्याख्या और भेदः - जिम कथा द्वारा विपाक की विरमता बता कर श्रोता में वैराग्य उत्पन्न किया जाता है । वह संवेगनी कथा है।
संवेगनी कथा के चार भेद:
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(१) इहलोक संवेगनी ( २ ) परलोक संवेगनी
(३) स्वशरीर संवेगनी ( ४ ) पर शरीर संवेगनी । (१) इहलोक संवेगनी : - यह मनुष्यत्व कदली स्तम्भ के समान असार है, स्थिर है । इत्यादि रूप से मनुष्य जन्म का