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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह राजा की निर्याण कथा-राजा के नगर से निकलने की बात
करना तथा उस समय के ऐश्वर्य का वर्णन करना निर्याण
कथा है। राजा के बल वाहन की कथा-राजा के अश्व, हाथी आदि सेना,
और रथ आदि वाहनों के गुण और परिमाण आदि का वर्णन करना बल वाहन कथा है। राजा के कोष और कोठार की कथा-राजा के खजाने और धान्य
आदि के कोठार का वर्णन करना, धन धान्य आदि के परिमाण का कथन करना, कोष और कोठार की कथा है। उपाश्रय में बैठे हुए साधुओं को राज कथा करते हुए सुन कर राजपुरुष के मन में ऐसे विचार आ सकते हैं कि ये वास्तव में साधु नहीं हैं। सच्चे साधुओं को राजकथा से क्या प्रयोजन ? मालूम होता है कि ये गुप्तचर या चोर हैं। राजा के अमुक अश्व का हरण हो गया था, राजा के स्वजन को किसी ने मार दिया था। उन अपराधियों का पता नहीं लगा। क्या ये वे ही तो अपराधी नहीं हैं ? अथवा ये उक्त काम करने के अभिलाषी तो नहीं हैं ? राजकथा सुनकर किसी राजकुल से दीक्षित साधु को भुक्त भोगों का स्मरण हो सकता है। अथवा दूसरा साधु राजऋद्धि सुन कर नियाणा कर सकता है । इस प्रकार राजकथा के ये तथा और भी अनेक दोष हैं।
(निशीथ चूर्णि उद्देशा १)