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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला १५३-धर्मकथा की व्याख्या और भेदः
दया, दान, क्षमा आदि धर्म के अंगों का वर्णन करने वाली और धर्म की उपादेयता बताने वाली कथा धर्मकथा है। जैसे उत्तराध्ययन आदि ? धर्मकथा के चार भेदः-- (१) आक्षेपणी (२) विक्षेपणी । (३) संवेगनी (४) निर्वेदनी।
(ठाणांग ४ उद्देशा २ सूत्र २८२) १५४-आक्षेपणी कथा की व्याख्या और भेदः
श्रोता को मोह से हटा कर तत्त्व की ओर आकर्षित करने वाली कथा को आक्षेपणी कथा कहते हैं। इसके चार भेद हैं:
(१) याचार आक्षपणी, (२) व्यवहार आक्षेपणी । (३) प्रज्ञप्ति आक्षेपणी, (४) दृष्टिवाद आक्षेपणी।
(१) केश लोच, अस्नान आदि अाचार के अथवा आचारांग सूत्र के व्याख्यान द्वारा श्रोता को तत्त्व के प्रति प्राकृर्षित करने वाली कथा आचार आक्षेपणी कथा है।
(२) किसी तरह दोष लगाने पर उमकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त अथवा व्यवहार सूत्र के व्याख्यान द्वारा तत्त्व के प्रति आकर्षित करने वाली कथा को व्यवहार आक्षेपणी कथा कहते हैं।
(३) संशय युक्त श्रोता को मधुर वचनों से समझा कर या प्रज्ञप्ति सूत्र के व्याख्यान द्वारा तत्व के प्रति झुकाने वाली कथा को प्रज्ञप्ति आक्षेपणी कथा कहते हैं ।