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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (३) भोजन की प्रारम्भ कथा-इतने जीवों की इसमें हिंसा
होगी । इत्यादि आरम्भ की कथा करना आरम्भ कथा है। (४) भोजन की निष्ठान कथा-इस भोजन में इतना द्रव्य लगेगा आदि कथा निष्ठान कथा है।
(ठाणांग ४ सूत्र २८२) भक्त कथा अर्थात् आहार कथा करने से गृद्धि होती है। और आहार विना किए ही गृद्धि आसक्ति से साधु को इङ्गाल आदि दोष लगते हैं । लोगों में यह चर्चा होने लगती है कि यह साधु अजितेन्द्रिय है । इन्होंने खाने के लिए संयम लिया है। यदि ऐसा न होता तो ये साधु
आहार कथा क्यों करते ? अपना स्वाध्याय, ध्यान आदि क्यों नहीं करते ? गृद्धि भाव से पट जीव निकाय के वध की अनुमोदना लगती है । तथा आहार में आसक्त साधु एषणाशुद्धि का विचार भी नहीं कर सकता । इस प्रकार भक्त कथा के अनेक दोष हैं।
(निशीथ चूणि उद्देशा १) १५१: देशकथा चार
(१) देश विधि कथा (२) देश विकल्प कथा
(३) देश छंद कथा (४) देश नेपथ्य कथा । देश विधि कथा-देश विशेष के भोजन, मणि, भूमि, आदि
की रचना तथा वहां भोजन के प्रारम्भ में क्या दिया जाता है, और फिर क्रमशः क्या क्या दिया जाता है ? आदि कथा करना देश विधि कथा है।