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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला स्त्री की कुल कथा---उग्र कुल आदि की स्त्रियों की प्रशंसा या
निन्दा करना। स्त्री की रूप कथा--आन्ध्र आदि देश की स्त्रियों के रूप का वर्णन
करना, अथवा भिन्न भिन्न देशों की स्त्रियों के भिन्न भिन्न
अङ्गों की प्रशंसा या निन्दा करना। स्त्री की वेश कथा--स्त्रियों के वेणीवन्ध और पहनाव आदि की
प्रशंमा या निन्दा करना--जैसे अमुक देश की स्त्री के वेश में यह विशेषता है या न्यूनता है ? अमुक देश की स्त्रियें मुन्दर केश मंवारती हैं । इन्यादि ।
(ठाणांग ४ सूत्र २८२) स्त्री कथा करने और सुनने वालों को मोह की उत्पति होती है । लोक में निन्दा होती है। सूत्र और अर्थ ज्ञान की हानि होती । ब्रह्मचर्य में दोप लगता है । स्त्रीकथा करने वाला संयम से गिर जाता है । कुलिङ्गी हो जाता है या साधु वेश में रह कर अनाचार सेवन करता है।
(निशीथ चूणि उद्देशा १) १५०-भक्त (भात) कथा चार
(१) आवाप कथा (२) निर्वाप कथा ।
(३) आरम्भ कथा (४) निष्ठान कथा । (१) भोजन की आवाप कथा--भोजन बनाने की कथा ।
जैसे इस मिठाई को बनाने में इतना घी, इतनी चीनी, आदि
सामग्री लगेगी। (२) भोजन निर्वाप कथा इतने पक्क, अपक्क अन्न के भेद हैं।
इतने व्यंजन होते है। आदि कथा करना निर्वाप कथा है।