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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
१४७ - चार गति में चार संज्ञाओं का अल्पबहुत्व |
सब से थोड़े नैरयिक मैथुन संज्ञा वाले होते हैं। आहार संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं । परिग्रह संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं । और भय संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं । तिर्यञ्च गति में सब से थोड़े परिग्रह संज्ञा वाले हैं । मैथुन संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं । भय संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं । और आहार संज्ञा वाले उनसे भी संख्यात गुणा हैं I
मनुष्यों में सत्र से थोड़े भय संज्ञा वाले हैं। आहार संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं । परिग्रह संज्ञा वाले उन से संख्यात गुणा हैं। मैथुन संज्ञा वाले उनसे भी संख्यात गुणा हैं 1 देवताओं में सब से थोड़े आहार मंज्ञा वाले हैं । भय मंज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं। मैथुन संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं और परिग्रह संज्ञा वाले उनसे भी संख्पात गुणा हैं । (पनवरणा संज्ञा पद ८)
१४८ - विकथा की व्याख्या और भेद:
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यम में बाधक चारित्र विरुद्ध कथा को विकथा कहते हैं । विकथा के चार भेद हैं:
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(१) स्त्रीकथा, (२) भक्तकथा (३) देशकथा (४) राजकथा । (ठाणांग ४ सूत्र २८२ )
१४६ - स्त्रीकथा के चार भेद:
(१) जाति कथा (२) कुल कथा (३) रूपकथा ( ४ ) वेश कथा स्त्री की जाति कथा -- ब्राह्मण आदि जाति की स्त्रियों की प्रशंसा या निन्दा करना |