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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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१४४ - भय मंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है :(१) सव अर्थात् शक्ति हीन होने से । (२) भय मोहनीय कर्म के उदय से ।
(३) भय की बात मुनने, भयानक वस्तुओं के देखने
आदि से ।
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(४) इह लोक आदि भय के कारणों को याद करने से । इन चार बोलों से जीव को भय संज्ञा उत्पन्न होती है । १४५ - मैथुन मंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है । (१) शरीर के खूब हृष्टपुष्ट होने से (२) वेद मोहनीय कर्म के उदय से । (३) काम कथा श्रवण आदि से । (४) सदा मैथुन की बात सोचते रहने से । इन चार बोलों से मैथुन संज्ञा उत्पन्न होती है । १४६ - परिग्रह संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है :
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( १ ) परिग्रह की वृत्ति होने से ।
(२) लोभ मोहनीय कर्म के उदय होने से ।
(३) सचित, अति और मिश्र परिग्रह की बात सुनने और देखने से ।
(४) सदा परिग्रह का विचार करते रहने से । इन चार बोलों से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है ।
( बोल नम्बर १४२ से १४६ तक के लिए प्रमारण ) ( ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३५६ ) ( अभिधान राजेन्द्र कोष ७ वां भाग पृष्ठ ३०० ) प्रवचन सारोद्वार गाथा ६२३ )