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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह मंज्ञा के चार भेद हैं
(१) आहार संज्ञा । (२) भय मंज्ञा । (३) मैथुन संज्ञा ।
(४) पग्ग्रिह मंज्ञा । आहार मंज्ञाः-तैजस शरीर नाम कर्म और क्षुधा वेदनीय के उदय से कवलादि आहार के लिए आहार योग्य पुद्गलों को ग्रहण करने की जीव की अभिलाषा को आहार मंज्ञा
कहने हैं। भय मंज्ञाः-भय मोहनीय के उदय से होने वाला जीव का त्रास
रूप परिणाम भय संज्ञा है । भय से उद्घांत जीव के नेत्र
और मुख में विकार, गेमाश्च , कम्पन आदि क्रियाएं होती हैं। मैथुन मंज्ञाः-वेद मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाली ___ मैथुन की इच्छा मैथुन मंज्ञा है । पग्ग्रिह मंज्ञाः-लोभ मोहनीय के उदय से उत्पन्न होने वाली
मचित्त आदि द्रव्यों को ग्रहण रूप आत्मा की अभिलाषा
अर्थात् तृष्णा को पग्ग्रिह संज्ञा कहते हैं। १४३-आहार संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है:
(१) पेट के खाली होने से। (२) क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से । (३) आहार कथा सुनने और आहार के देखने से । (४) निरन्तर आहार का स्मरण कग्ने से । इन चार बोलों से जीव के आहार मंज्ञा उत्पन्न होती है।