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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भूतः वनस्पति काय को भूत कहते हैं । जीवः - पञ्चेन्द्रिय प्राणियों को जीव कहते है । सत्त्वः -- पृथ्वी काय, अपकाय, तेउकाय और वायुकाय इन चार
स्थावर जीवों को सच कहते हैं ।
( ठाणांग ५ उद्देशा २ सूत्र ४३० ) श्री भगवती सूत्र शतक २ उद्देशा १ में जीव के प्राण, भूत, जीव, मत्र आदि छह नाम भिन्न भिन्न धर्मों की विवक्षा से दिये हैं । विज्ञ और वेद ये दो नाम वहां अधिक हैं | जैसे कि:
प्राण:- प्राणवायु को खींचने और बाहर निकालने अर्थात् श्वासोच्छ्वास लेने के कारण जीव को प्राण कहा जाता है । भूतः -- तीनों कालों में विद्यमान होने से जीव को भूत कहा है।
जीव: - जीता है अर्थात् प्राण धारण करता है और आयु कर्म तथा जीवत्व का अनुभव करता है इसलिए यह जीव है । मत्त: - (सक्त, शक्त, अथवा मच्च) जीव शुभाशुभ कर्मों के साथ सम्बद्ध है | अच्छे और बुरे काम करने में समर्थ है। या सत्ता वाला है । इसलिए इसे सत्त ( क्रमश:-सक्त, शक्त, सत्त्व) कहा जाता है।
विज्ञ: -- कड़वे, कषैले, खट्टे मीठे रसों को जानता है इसलिए विज्ञ कहलाता है ।
वेद: - जीव सुख दुःखों का भोग करता है इसलिए वह वेद कहलाता है ।