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श्री जैन सिद्धान्त बोल समह
१३१ - गति की व्याख्या:
गति नामक नामकर्म के उदय से प्राप्त होने वाली पर्याय
गति कहलाती है ।
गति के चार भेद:
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( १ ) नरक गति ( २ ) तिर्यञ्च गति । ( ३ ) मनुष्य गति ( ४ ) देव गति ।
( पनवरणा पद २३ उद्देशा २ ) ( कर्मग्रन्थ भाग ४ गाथा १० )
१३२ - नरक आयु बन्ध के चार कारण:
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( १ ) महारम्भ ( २ ) महापरिग्रह ( ३ ) पञ्चेन्द्रिय वध ( ४ ) कुणिमाहार ।
महारम्भः -- बहुत प्राणियों की हिंसा हो, इस प्रकार तीव्र परिणामों से कषाय पूर्वक प्रवृत्ति करना महारम्भ है ।
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महा परिग्रहः-- वस्तुओं पर अत्यन्त मूर्छा, महा परिग्रह है । पञ्चेन्द्रिय वधः -- पञ्चेन्द्रिय जीवों की हिंसा करना पञ्चेन्द्रिय वध है ।
कुणिमाहारः -- कुणिमा अर्थात् मांस का आहार करना । इन चार कारणों से जीव नरकायु का बन्ध करता है ।
( ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३७३ )
१३३ - तिर्यञ्च श्रायु बन्ध के चार कारण:
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