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श्री सिद्धान्त जैन बोल संग्रह माता के आराधक, पंच महाव्रतधारी मुनि साधु कहलाते हैं।
आचार्य, उपाध्याय का भी इन्हीं में समावेश किया गया है । केवली प्ररूपित धर्म:-पूर्ण ज्ञान सम्पन्न केवली भगवान से प्ररूपित श्रुत चारित्र रूम धर्म केवली प्ररूपित धर्म है।
ये चारों हित और सुखकी प्राप्ति में कारण रूप हैं। अत एव मंगल रूप हैं। मंगल रूप होने से ये लोक में
उत्तम हैं।
__ हरिभद्रीयावश्यक में चारों की लोकोतमता इस प्रकार बतलाई है:
औदयिक आदि छः भाव भावलोक रूप हैं । अरिहन्त भगवान् इन भावों की अपेक्षा लोकोत्तम हैं । अर्हन्तावस्था में प्रायः अघाती कर्मों की शुभ प्रकृतियों का उदय रहता है इम लिये औदयिक भाव उत्तम होता है । चारों घाती कर्मों के क्षय होने से क्षायिक भाव भी इन में सर्वोत्तम होता है ।
औपशशमिक एवं क्षायोपशमिक भाव अरिहन्त में होते ही नहीं हैं। क्षायिक एवं औदयिक के संयोग से होने वाला सानिपातिक भाव भी अरिहन्त में उत्तम होता है । क्योंकि क्षायिक और औदयिक भाव दोनों ही उत्तम ऊपर बताये जा चुके हैं । इस प्रकार अरिहन्त भगवान् भाव की अपेक्षा लोकोत्तम हैं । सिद्ध भगवान् क्षायिक भाव की अपेक्षा लोकोत्तम हैं। इसी प्रकार लोक में सर्वोच्च स्थान पर विराजने से क्षेत्र की अपेक्षा भी वे लोकोत्तम हैं।