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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
चौथा बोल
(बोल नम्बर १२६ से २७३ तक) १२६ (क)-चार मंगल रूप हैं, लोक में उत्तम हैं तथा शरण
(१)-अग्हिन्त, (२) सिद्ध,
(३) माधु, (४) केवली प्ररूपित धर्म, अम्हिन्त--चार घाती कर्म रूप शत्रुओं का नाश करने
वाले, देवेन्द्र कृत अष्ट महा प्रातिहार्यादि रूप पूजा को प्राप्त, सिद्विगति के योग्य, केवल ज्ञान एवं केवन दर्शन से त्रिकाल एवं लोक त्रय को जानने और देखने वाले, हितो पदेशक, मर्वज्ञ भगवान अरिहन्त कहलाते हैं । अरिहन्त भगवान् के आठ महाप्रातिहार्य और चार मूलातिशय रूप
वारह गुण हैं। मिद्धः-शुक्ल ध्यान द्वारा आठ कर्मों का नाश करने वाले,
लोकाग्रस्थित सिद्धशिला पर विराजमान, कृत कृत्य, मुक्तात्मा मिद्ध कहे जाते हैं। आठ कर्म का नाश होने से इन में आठ गुण प्रगट होते हैं। नोटः-सिद्ध भगवान् के आठ गुणों का वर्णन आठवें
वोल में दिया जायगा। साधुः सम्यग ज्ञान, सम्यग दर्शन, और सम्यग-चारित्र
द्वारा मोक्षमाग की आराधना करने वाले, प्राणी मात्र पर समभाव रखने वाले, पटकाया के रक्षक, आठ प्रवचन