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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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व्यापारों में प्रवृत्ति न करना अर्थात् इन व्यापारों से निवृत्त होना कायगुप्ति है । अयतना का परिहार कर यतनापूर्वक काया से व्यापार करना एवं अशुभ व्यापारों का त्याग करना काय गुप्ति है ।
( उत्तराध्ययन अध्ययन २४ ) ( ठाणांग ३ उद्देशा १ सूत्र १२६ )