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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला परमात्माः सकल कर्मों का नाश कर जिस आत्मा ने अपना
शुद्ध ज्ञान स्वरूप प्राप्त कर लिया है। जो वीतराग और कृतकृत्य है ऐसी शुद्धात्मा परमात्मा है ।
(परमात्म प्रकाश गाथा १३, १४, १५) १२६-तीन अर्थयोनिः-राजलक्ष्मी आदि की प्राप्ति के उपाय
अर्थ योनि हैं । वे उपाय तीन हैं।
(१) माम (२) दण्ड (३) भेद । मामः--एक दूसरे के उपकार को दिखाना, गुण कीर्तन करना,
सम्बन्ध का कहना, भविष्य की आशा देना, मीठे वचनों से “मैं तुम्हारा ही हूँ।" इत्यादि कहकर आत्मा का अर्पण
करना, इस प्रकार के प्रयोग साम कहलाते हैं । दण्ड:-चध, क्लेश, धन हरण आदि द्वारा शत्रु को वश करना
दण्ड कहलाता है। भेदः-जिस शत्रु को जीतना है, उस के पक्ष के लोगों का उस
से स्नेह हटाकर उन में कलह पैदा कर देना तथा भय दिखा कर फूट करा देना भेद है।
(ठाणांग ३ सूत्र १८५ की टीका) १२७-श्रद्धाः-जहां तर्क का प्रवेश न हो ऐसे धर्मास्तिकाय
आदि पर व्याख्याता के कथन से विश्वास कर लेना
श्रद्धा है। प्रतीतिः-व्याख्याता से युनियों द्वारा समझ कर विश्वास करना
प्रतीति है।