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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
सूक्ष्म बालाग्र खण्डों से भरा हो एवं उनमें से प्रत्येक बालाग्र खण्ड सौ सौ वर्ष में निकाला जाय । इस प्रकार निकालते निकालते वह कुंआ जितने काल में खाली हो जाय वह सूक्ष्म श्रद्धा पल्योपम है । सूक्ष्म श्रद्धा पल्योपम में असंख्यात वर्ष कोटि परिमाण काल होता है ।
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क्षेत्र पल्योपमः -- उपरोक्त परिमाण का कूप उपरोक्त रीति से बालाग्रों से भरा हो । उन बालाग्रों से जो आकाश प्रदेश हुए हुए हैं। उन छुए हुए आकाश प्रदेशों में से प्रत्येक को प्रति समय निकाला जाय। इस प्रकार सभी आकाश प्रदेशों को निकालने में जितना समय लगे वह क्षेत्र - पल्योपम है । यह काल असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी परिमाण होता है । यह भी सूक्ष्म और व्यवहार के भेद से दो प्रकार का है । उपरोक्त स्वरूप व्यवहार क्षेत्र पल्योपम का हुआ ।
यदि यही कुंद्रा बालाग्र के सूक्ष्म खण्डों से ठूंस ठूंस कर भरा हो । उन बालाग्र खण्डों से जो आकाश प्रदेश छुए हुए हैं और जो नहीं हुए हुए हैं । उन हुए हुए और नहीं हुए हुए सभी आकाश प्रदेशों में से प्रत्येक को एक एक समय में निकालते हुए सभी को निकालने में जितना काल लगे वह सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम है । यह भी असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी परिमाण होता है । व्यवहार क्षेत्र पन्योपम से असंख्यात गुणा यह काल जानना चाहिए ।
( अनुयोगद्वार सूत्र १३८ - १४०
पृष्ठ १७६ श्रागमोदम समिति )
( प्रवचन सारोद्धार गाथा १०१८ से १०२६ तक )