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श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला हवा से न उड़ मके और आग से न जल मके उनमें से प्रत्येक को एक एक ममय में निकालते हुए जितने काल म वह कुंआ सर्वथा खाली हो जाय उस काल परिमाण को उद्धार पल्योपम कहते हैं । यह पल्योपम संग्व्यात समय
पग्मिाण होता है। उद्धार पल्योपम सूक्ष्म और व्यवहारिक के भेदसे दो प्रकार का है।
उपरोक्त वर्णन व्यवहारिक उद्वार पल्योपम का है । उक्त वालाग्र के अमंन्यात अदृश्य खंड किये जाय जो कि विशुद्ध लोचन वाले छद्मथ पुम्प के दृष्टिगोचर होने वाले सूक्ष्म पुद्गल द्रव्य के अमंग्व्यातवें भाग एवं मून्म पनक (नीलण-फूलण) शरीर के असंख्यात गुणा हो । उन सूक्ष्म वालाग्र सण्डों से वह कुंया हम हम कर भरा जाय और उनमें से प्रति-ममय एक एक बालाग्र खण्ड निकाला जाय। इस प्रकार निकालने निकालने जितने काल में वह कुंआ सर्वथा खाली हो जाय उसे सूक्ष्म उद्धार पल्योपम कहते हैं । सूक्ष्म उद्धार पल्योपम में मुख्यात वर्ष कोटि
पग्मिाण काल होता है। श्रद्धा पल्योपमः-उपरोक्त रीनि से भरे हुए उपरोक्त परिमाण के
कूप में से एक एक वालाग्र मी मी वर्ष में निकाला जाय । इस प्रकार निकालने निकालने जितने काल में वह कुंआ सर्वथा खाली हो जाय उस काल परिमाण को अद्धा पल्योपम कहते हैं। यह मंख्यात वर्ष कोटि परिमाण होता है। इसके भो सूक्ष्म और व्यवहार दो भेद हैं। उक्त स्वरूप व्यवहार अद्धा पल्यापम का है। यदि यही कूप उपरोक्त