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श्री जैन सिद्धान्त बाल संग्रह
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शिल्पाचार्य और कलाचार्य की विनय भक्ति धर्माचार्य की विनय भक्ति से भिन्न प्रकार की है । शिल्पाचार्य और कलाचार्य को स्नान आदि कराना, उनके लिऐ पुष्प लाना, उनका मण्डन करना, उन्हें भोजन कराना, विपुल आजीविका योग्य प्रीतिदान देना, और उनके पुत्र पुत्रियों का पालन पोषण करना, यह उनकी विनय-भक्ति का प्रकार है ।
धर्माचार्य को देखते ही उन्हें वन्दना, नमस्कार करना, उन्हें सत्कार सन्मान देना, यावत् उनकी उपासना करना, प्रामुक, एषणीय आहार पानी का प्रतिलाभ देना, एवं पीढ़, फलग, शय्या, संथारे के लिए निमन्त्रण देना, यह धर्माचार्य की विनय भक्ति का प्रकार है ।
( रायप्रश्नीय सूत्र ७७ पृष्ठ १४२ ) ( अभिधान राजेन्द्र कोप भाग २ पृष्ठ ३०३ )
१०४ - शल्य तीन: - जिससे बाधा ( पीड़ा ) हो उसे शल्य कहते हैं । कांटा भाला वगैरह द्रव्य शल्य हैं ।
भावशल्य के तीन भेद:
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( १ ) माया शल्य ( २ ) निदान ( नियाण ) शल्य ( ३ ) मिथ्या दर्शन शल्य |
माया शल्यः -- कपट भाव रखना माया शल्य है । अतिचार लगा कर माया से उसकी आलोचना न करना अथवा गुरु के समक्ष अन्य रूप से निवेदन करना, अथवा दूसरे पर भूंठा आरोप लगाना माया शल्य है
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( धर्मसंग्रह अध्याय ३ पृष्ठ ७६ )