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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (३) चारित्र ऋद्धिः-अतिचार रहित शुद्ध, उत्कृष्ट चारित्र का पालन करना।
अथवाःसचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से भी प्राचार्य की ऋद्धि तीन प्रकार की है। (१) मचितऋद्धिः-शिप्य वगैरह । (२) अचित्तऋद्धिः -चस्व वगैरह । (३) मिश्रऋद्धिः-चस्त्र पहने हुए शिष्य वगैरह ।
(ठाणांग ३ सूत्र २१४) १०३-आचार्य के तीन भेदः
(१) शिल्पाचार्य (२) कलाचार्य (३) धर्माचार्य । शिल्पाचार्यः-लुहार, सुनार, शिलावट, सुथार, चितेरा इत्यादि
के हुन्नर को शिल्प कहते हैं । इन शिल्पों में प्रवीण शिक्षक
शिल्पाचार्य कहलाते हैं। कलाचार्य:-काव्य, नाट्य, संगीत, चित्रलिपि इत्यादि पुरुष
की ७२ और स्त्रियों की ६४ कला को सीखाने वाले
अध्यापक कलाचार्य कहलाने हैं। धर्माचार्य:-श्रुत चारित्र रूप धर्म का स्वयं पालन करने वाले,
दूसरों को उसका उपदेश देने वाले, गच्छ के नायक, साधु मुनिराज धर्माचार्य कहलाने हैं।
शिल्पाचार्य और कलाचार्य की सेवा इहलौकिक हित के लिए और धर्माचार्य की सेवा पारलौकिक हित-निर्जरा आदि के लिए की जाती है।