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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
अथवाः(१) सचित्त ऋद्धिः-अग्रमहिषी आदि सचित्त वस्तुओं की
सम्पत्ति । (२) अचित्त ऋद्धिः-वस्त्र आभूषण की ऋद्धि । (३) मिश्र ऋद्धिः-वस्त्राभूषणों से अलंकृत देवी आदि की ऋद्धि।
(ठाणांग ३ सूत्र २१४) १०१-राजा की ऋद्धि के तीन भेदः(१) अति यान ऋद्धिः-नगर प्रवेश में तोरण बाजार आदि
की शोभा, लोगों की भीड़ आदि रूप ऋद्धि अर्थात्
नगर प्रवेश महोत्सव की शोभा । (२) निर्याण ऋद्धिः-नगर से बाहर जाने में हाथियों की
सजावट, सामन्त आदि की ऋद्धि। (३) राजा के सैन्य, वाहन, खजाना और कोठार की ऋद्धि।
अथवा:सचित्त, अचित्त, मिश्र के भेद से भी राजा की ऋद्धि के तीन भेद हैं।
(ठाणांग ३ सूत्र २१४) १०२-आचार्य की ऋद्धि के तीन भेदः
(१) ज्ञानऋद्धि (२) दर्शनऋद्धि (३) चारित्रऋद्धि । (१) ज्ञान ऋद्धिः-विशिष्ट श्रुत की सम्पदा । (२) दर्शन ऋद्धिः-आगम में शंका आदि से रहित
होना तथा प्रवचन की प्रभावना करने वाले शास्त्रों का ज्ञान ।