________________
श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
--
८- गाव (गौरव) की व्याख्या और भेद:द्रव्य और भाव भेद से गौरव दो प्रकार का है । वज्रादि की गुरुता द्रव्य गौरव है । अभिमान एवं लोभ से होने वाला आत्मा का अशुभ भाव भाव गौरव (भाव गाव ) है । यह संसार चक्र में परिभ्रमण कराने वाले कर्मों का कारण है ।
गाव (गौरव) के तीन भेद:
(१) ऋद्धि गौरव (२) रसगौरव (३) साता गौरव । ऋद्धि गौरव: - राजा महाराजाओं से पूज्य आचार्य्यता आदि की ऋद्धि का अभिमान करना एवं उनकी प्राप्ति की इच्छा करना ऋद्धि गौरव है ।
Co
गौरव - रसना इन्द्रिय के विषय मधुर आदि रसों की प्राप्ति अभिमान करना या उनकी इच्छा करना रसगौरव है । माता गौरव:- साता-स्वस्थता आदि शारीरिक सुखों की प्राप्ति होने से अभिमान करना या उनकी इच्छा करना सातागौरव है । ( ठाणांग ३ सूत्र २१५ )
- ऋद्धि के तीन भेद:
●
(१) देवता की ऋद्धि (२) राजा की ऋद्धि
(३) आचार्य को ऋद्धि |
१०० -देवता की ऋद्धि के तीन
( ठाणांग ३ सूत्र २१५ )
भेद:
(२) विक्रिया करने की ऋद्धि
(१) विमानों की ऋद्धि (३) परिचारणा ( कामसेवन) की ऋद्धि ।