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श्री सिद्धान्त जैन बोल संग्रह
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(१) ज्ञानाराधना (२) दर्शनाराधना (३) चारित्रागधना | ज्ञानाराधना: - ज्ञान के काल, विनय, बहुमान आदि आठ आचारों का निर्दोष रीति से पालन करना ज्ञानाराधना है । दर्शनाराधना :- शंका, कांक्षा आदि समकित के अतिचारों को न लगाते हुए निःशंकित आदि समकित के आचारों का शुद्धता पूर्वक पालन करना दर्शनाराधना है । चारित्राराधना: -- सामायिक आदि चारित्र में हुए निर्मलता पूर्वक उसका पालन धना है ।
अतिचार न लगाते करना चारित्राग
( ठागांग ३ उद्देशा ३ सूत्र १६५ ) ८७- विराधना: - ज्ञानादि का सम्यक् रीति से आराधन न करना उनका खंडन करना, और उनमें दोष लगाना विराधना है । विराधना के तीन मेदः --
(१) ज्ञान विराधना (२) दर्शन विराधना (३) चारित्र विराधना |
ज्ञान विराधना:- ज्ञान एवं ज्ञानी की अशातना, अपलाप आदि द्वारा ज्ञान की खण्डना करना ज्ञान विराधना है ।
दर्शन विराधना : -- जिन वचनों में शंका करने, आडम्बर देख कर अन्यमत की इच्छा करने, सम्यक्त्व धारी पुरुष की निन्दा करने, मिथ्यात्वी की प्रशंसा करने आदि से समकित की विराधना करना दर्शन विराधना है ।
चारित्र विराधना :- सामायिक आदि चारित्र की विराधना करना चारित्र विराधना है ।
( समवायांग सूत्र ३)