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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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तदुभयागमः --सूत्र और अर्थ दोनों रूप आगम को तदुभयागम
कहते हैं।
(अनुयोगद्वार सूत्र १४३)
आगम के तीन और भी भेद हैं:
(१) आत्मागम (२) अनन्तरागम (३) परम्परागम । आत्मागमः - गुरु के उपदेश विना स्वयमेव आगम ज्ञान होना आत्मागम है । जैसे:- तीर्थकरों के लिए अर्थागम आत्मागम रूप है और गणधरों के लिए सूत्रागम आत्मागम रूप है अनन्तरागमः --- स्वयं आत्मागम धारी पुरुष से प्राप्त होने वाला श्रागमज्ञान अनन्तरागम है । गणधरों के लिए अर्थागम अनन्तरागम रूप है । तथा जम्बूस्वामी आदि गणधरों के शिष्यों के लिए सूत्रागम अनन्तरागम रूप है ।
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परम्परागमः - साक्षात् आत्मागम धारी पुरुष से प्राप्त न होकरं जो आगम ज्ञान उनके शिष्य प्रशिष्यादि की परम्परा से आता है वह परम्परागम है । जैसे जम्बूस्वामी आदि गणधर - शिष्यों के लिए अर्थागम परम्परागम रूप है । तथा इनके पश्चात् के सभी के लिए सूत्र एवं अर्थ रूप दोनों प्रकार का आगम परम्परागम है ।
(अनुयोगद्वार प्रमाणाधिकार सूत्र १४४ )
८४ - पुरुष के तीन प्रकार :
(१) सूत्रधर (२) अर्थधर (३) तदुभयधर ।
सूत्रधर:- सूत्र को धारण करने वाले शास्त्र पाठक पुरुष को सूत्रधर पुरुष कहते हैं ।