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श्री जैन सठिया प्रन्थमाला श्रुत धर्म में राग:-जिस प्रकार तरुण पुरुप रङ्ग राग में अनुरक्त
रहता है उससे भी अधिक शास्त्र-श्रवण में अनुरक्त रहना । चारित्र धर्म में राग:--जिस प्रकार तीन दिन का भूखा मनुष्य
खीर आदि का आहार रुचि पूर्वक करना चाहता है उससे
भी अधिक चारित्र धर्म पालने की इच्छा रखना। देवगुरु की वैयावच्च का नियमः-देव और गुरु में पूज्य भाव
रखना और उनका आदर सत्कार रूप वैयावच्च का नियम करना।
(प्रवचन सारोद्धार गाथा १२६ ) ८२-समकित की तीन शुद्धियों:--जिनेश्वर देव, जिनेश्वर देव
द्वारा प्रतिपादित धर्म और जिनेश्वर देव की आज्ञानुसार विचग्ने वाले साधु । ये तीनों ही विश्व में सारभूत हैं। ऐमा विचार करना समकित की तीन शुद्धियों हैं।
___ (प्रवचन सारोद्धार गाथा ६३२) ८३-आगम की व्याख्या और भेदः-राग-द्वेष रहित, सर्वज्ञ, हितोपदेशक महापुरुष के वचनों से होने वाला अर्थज्ञान आगम कहलाता है । उपचार से प्राप्त वचन भी आगम कहा जाता है।
__ (प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार परिच्छेद ४ ) आगम के तीन भेदः--
(१) सूत्रागम (२) अर्थागम (३) तदुभयागम । सूत्रागमः--मूल रूप आगम को सूत्रागम कहते हैं। अर्थागम:--सूत्र-शास्त्र के अर्थ रूप आगम को अर्थागम
कहते हैं।