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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
कुछ खुला हुआ हो उसे संवृत्त योनि कहते हैं ।
नारक, देव और एकेन्द्रिय जीवों के संवृत्त, गर्भज जीवों के संवृत्तविवृत्त और शेष जीवों के विवृत्त योनि होती है । ( ठाणांग ३ उद्देशा १ सूत्र १४० ) ( तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ )
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६८ - वेद की व्याख्या और उसके भेदः - मैथुन करने की अभिलाषा को वेद (भाव वेद ) कहते हैं । यह नोकषाय मोहनीय कर्म के उदय से होता है ।
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स्त्री पुरुष आदि के बाह्य चिन्ह द्रव्यवेद हैं । ये नाम कम के उदय से प्रकट होते हैं ।
वेद के तीन भेदः - (१) स्त्री वेद (२) पुरुषवेद (३) नपुंसक वेद । स्त्री वेद: - जैसे पित्त के वश से मधुर पदार्थ की रुचि होती है । उसी प्रकार जिस कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के माथ रमण करने की इच्छा होती है । उसे स्त्री वेद कहते हैं
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पुरुष वेद: -- जैसे कफ के वश से खट्टे पदार्थ की रुचि होती हैं वैसे ही जिस कर्म के उदय से पुरुष को स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा होती है उसे पुरुष वेद कहते है ।
नपुंसक वेद: - जैसे पित्त और कफ के वश से मद्य के प्रति रुचि होती है उसी तरह जिस कर्म के उदय से नपुंसक को स्त्री और पुरुष दोनों के साथ रमण करने की अभिलाषा होती है। उसे नपुंसक वेद कहते हैं।