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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला सचित योनिः-जो योनि जीव प्रदेशों से व्याप्त हो उसे सचित
योनि कहते हैं। अचित्त योनिः-जो योनि जीव प्रदेशों से व्याप्त न हो उसे
अचित योनि कहते हैं। सचित्ताचित योनिः-जो योनि किसी भाग में जीवयुक्त हो और
किसी भाग में जीव रहित हो उसे सचिताचित योनि कहते हैं।
देव और नारकियों की अचित्त योनि होती है। गर्भज जीवों की मिश्र योनि (सचित्ताचित योनि) और शेष जीवों की
तीनों प्रकार की योनियों होती हैं। शीत योनिः-जिस उत्पत्ति स्थान में शीत स्पर्श हो उसे शीत
योनि कहते हैं। उष्ण योनिः-जिस उत्पति स्थान में उष्ण स्पर्श हो वह उष्ण
योनि है। शीतोष्ण योनिः--जिस उत्पत्ति स्थान में कुछ शीत और कुछ उष्ण स्पर्श हो उसे शीतोष्ण योनि कहते हैं।
देवता और गर्भज जीवों के शीतोष्ण योनि, तेजस्काय के उष्ण योनि, नारकीय जीवों के शीत और उष्ण
योनि तथा शेष जीवों के तीनों प्रकार की योनियों होती हैं। मवृत्त योनिः--जो उत्पत्ति स्थान ढूंका हुआ या दबा हुआ हो उसे ___ संवृत्त योनि कहते हैं। विधुत्त योनिः--जो उत्पतिस्थान खुला हुआ हो उसे विवृत्त योनि
कहते हैं। संवृत्तविवृत्त योनिः--जो उत्पत्ति स्थान कुछ ढंका हुआ और