________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह जन्म के तीन भेदः
(१) सम्मूर्छिम, (२) गर्भ, (३) उपपात | सम्मृर्छिम जन्म:-माता पिता के संयोग के विना उत्पत्ति स्थान
में रहे हुए औदारिक पुद्गलों को शरीर के लिए ग्रहण
करना सम्मूर्छिम जन्म कहलाता है । गर्भजन्म:-उत्पत्ति स्थान में रहे हुए पुरुष के शुक्र और स्त्री
के शोणित के पुद्गलों को शरीर के लिए ग्रहण करना गर्भजन्म है । अर्थात् माता पिता के संयोग होने पर
जिमका शरीर बने उसके जन्म को गर्भ जन्म कहते हैं। गर्भ से होने वाले जीव तीन प्रकार के होते हैं।
(१) अण्डज (२) पोतज (३) जरायुज । उपपात जन्मः-जो जीव देवों की उपपात शय्या तथा नारकियों
के उत्पत्ति स्थान में पहुंचते ही अन्तमुहृत्त में वैक्रिय पुद्गलों को ग्रहण करके युवावस्था को पहुंच जाय उसके जन्म को उपपात जन्म कहते हैं।
(तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २) ६७-योनि की व्याख्या और भेदः-उत्पत्ति स्थान अर्थात्
जिस स्थान में जीव अपने कार्मण शगेर को औदारिकादि स्थूल शरीर के लिए ग्रहण किये हुए पुद्गलों के साथ एक
मेक कर देता है । उसे योनि कहते हैं। योनि के भेद इस प्रकार हैं:
(१) सचित्त (२) अचित्त (३) सचित्ताचित्त । (१) शीत (२) उष्ण (३) शीतोष्ण। (१) संवृत्त (२) विवृत्त (३) संवृत्तविवृत्त ।