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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
की ऊंचाई पर एक राजू की चौड़ाई है। ऊर्ध्व और अधोदिशा में ऊंचाई चौदह राजू है ।
लोक के तीन भेद:
( १ ) ऊर्ध्वलोक, ( २ ) अधोलोक, ( ३ ) तिर्यक्लोक | ऊर्ध्वलोक:- मेरु पर्वत के समतल भूमि भाग के नौ सौ योजन
ऊपर ज्योतिष चक्र के ऊपर का सम्पूर्ण लोक ऊर्ध्वलोक है । इसका आकार मृदंग जैसा है । यह कुछ कम सात राजू परिमाण है ।
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अधोलोक - मेरु पर्वत के समतल भूमि भाग के नौ सौ योजन नीचे का लोक अधोलोक है । इसका आकार उल्टा किये हुए शराव ( मकोरे ) जैसा है । यह कुछ अधिक मात राजु परिमाण है ।
तियेकलोकः - ऊर्ध्वलोक और अधोलोक के बीच में अठारह सौ योजन परिमाण तिर्छा रहा हुआ लोक तिर्यक्लोक है । इसका आकार झालर या पूर्ण चन्द्रमा जैसा है 1
( लोक प्रकाश भाग २ सर्ग १२ ) ( अभिधान राजेन्द्र कोष भाग ६ पृष्ठ ६५७ ) ६६-जन्म की व्याख्या और भेदः -- पूर्व भव का स्थूल शरीर छोड़ कर जीव तेजस और कार्मण शरीर के साथ विग्रह गति द्वारा अपने नवीन उत्पत्ति स्थान में जाता है। वहां नवीन भव योग्य स्थूल शरीर के लिए पहले पहल आहार ग्रहण करना जन्म कहलाता है ।