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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह उत्पादः-नवीन पर्याय की उत्पति होना उत्पाद है। व्यय (विनाश):-विद्यमान पर्याय का नाश हो जाना व्यय है। धोव्यः द्रव्यत्व रूप शाश्वत अंश का सभी पर्यायों में अनुवृति रूप से रहना धौव्य है। ___ उत्पाद, व्यय और धौव्य का भिन्न २ स्वरूप होते हुए भी ये परस्पर सापेक्ष हैं । इसीलिए वस्तु द्रव्य रूप से नित्य और पर्याय रूप से अनित्य मानी गई है। (तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय ५ वाँ) ६५-लोक की व्याख्या और भेदः-धर्मास्तिकाय और अधर्मा स्तिकाय से व्याप्त सम्पूर्ण द्रव्यों के आधार रूप चौदह राजू परिमाण आकाश खण्ड को लोक कहते हैं । लोक का आकार जामा पहन कर कमर पर दोनों हाथ रख कर चारों ओर घूमते हुए पुरुष जैसा है । पैर से कमर तक का भाग अधोलोक है। उसमें सात नरक हैं। नाभि की जगह मध्य लोक है । उसमें द्वीप समुद्र हैं । मनुष्य और तिर्यञ्चों की बस्ती है । नाभि के ऊपर का भाग ऊर्ध्वलोक है । उसमें गरदन से नीचे के भाग में बारह देवलोक हैं । गरदन के भाग में नव वेयक हैं। मुंह के भाग में पांच अनुत्तर विमान हैं । और मस्तक के भाग में सिद्ध शिला है। लोक का विस्तार मूल में सात राजू है । ऊपर क्रम से घटते हुए सात राजू की ऊँचाई पर चौड़ाई एक राजू है । फिर क्रम से बढ़ कर साढ़े दस राजू की ऊँचाई पर चौड़ाई पांच राजू है । फिर क्रम से घट कर चौदह राजू
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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