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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला माला आदि । एक ही सोने की क्रमिक अवस्थाओं में रहने वाला सुवर्णच।
(प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार परिच्छेद ५ वां) ६०-द्रव्य के दो भेदः (१) रूपी (२) अरूपी । रूपी:-वर्ण, गन्ध, रम और स्पर्श जिसमें पाये जाते हों और जो
मूर्त हो उसे रूपी द्रव्य कहते हैं । पुदल द्रव्य ही रूपी
होता है। अरूपी:-जिममें वर्ण, गन्ध, रम, और स्पर्श न पाये जाने हों
तथा जो अमूर्त हो उसे अरूपी कहते हैं । पुदल के अतिरिक सभी द्रव्य अरूपी हैं।
(तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय ५ वां) ६१-रूपी के दो भेदः-(१) अष्टस्पर्शी (२) चतुःस्पर्शी । अष्ट स्पर्शी:-वर्ण, गन्ध, रम, तथा संस्थान के साथ जिसमें
हल्का, भारी आदि आठों स्पर्श पाये जाते हों । उसे अष्ट
स्पशी या अठफरसी कहते हैं। चतुःस्पर्शी:-वर्ण, गन्ध रम तथा शीत, उष्ण, रुक्ष और स्निग्ध
ये चार स्पर्श जिममें पाये जाते हों उसे चतुःस्पर्शी या चौफरसी कहते हैं।
(भगवती शतक १२ उद्देशा ५) ६२-लक्षण की व्याख्या और भेद-बहुत से मिले हुए पदार्थों
में से किसी एक पदार्थ को जुदा करने वाले को लक्षण
कहते हैं। लक्षण के दो भेदः-(१) आत्म-भूत (२) अनान्म भूत ।