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प्रथम भाग।
(६३),
छोड़ कर मैंने पती रामू के संग शादी करी । होगया जेवर खतम, तब कौन किसका भीर है ||" ( कुछ लोग उधर से होकर निकलते हैं वह पैसा मांगती है। इसके पल्ले में थूक देते है। लड़के आते हैं वह उसे ढले मारते हैं। नारियां आती हैं वह नाख पर कपडा रख
कर बच कर निकलती हैं।). सब लोग मुझ पर थूकते, लडके हैं ढेले मारते । नारी सिकोड़ति नाख हैं, यह क्या मेरी तकदीर है। (उसके पिता और ससुर उस रास्ते से आते हैं) ससुर-अाजकल कहीं चैन नहीं । . .
पिता-घर से चले कि हरिद्वार में जाकर शान्ति मिलेगी यहां पर .यह भिखमंगे जान खाये जाते है।
अबला-अरे दुष्टों तुम्हें हरिद्वार में नहीं तुम्हें सातवें नरक में शान्ति मिलेगी।
ससुर-ओ. स्त्री, क्या बकती है चुप रह ।
पिता-आजकल इन भिखंमगों के दिमाग चढ़ गये हैं। समझते हैं कि हमें गरीब जान कर हरएक कोई छोड़ देता है। इससे मन चाही नक देते हैं।
अबला--तुम लोग. श्रन्धे हो । तुम्हारी आँखें नहीं हैं।