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श्री जैन नाटकीय रामायण।
यह केवल दो सुराख हैं जो तुम हमें भिखमंगा समझते हो। हम तुम्हारे अत्याचारों के शिकार हैं। समझो न भिखमंगी हूं मैं, मैं आग की पुतली हूं वो । करदे भसम एक आह से, मैं प्रलय की कारी हूंघो । नमूना अत्याचारों का, तुम्हारे सामने हूं मैं । तुम आंखें खोल कर देखो, तुम्हारी कामनी हूं मैं ॥ '
पिता हैं, कौन ? क्या तू सचमुच मेरी पुत्री कामनी है.। बता वेटी इस तेरे भाग्य में मेरा क्या अपराध जो तु मुझे कोसती है।
लमुर-और देखो तो कैसी वेशरम है, सुसरे के सामने ऐसे मुंह खोले हुवे पटापट बोल रही है।
अबला-अपराध ? मुझसे अपराध पूछते हो? तुम्हीं ने तो मुझे इस अवस्था तक पहुंचाया है।
ससुर-अरे कुछ तो शरम कर।
अबला-बस, बस, चुप रह, ओ लोभ के पुतले, अन्याय के बाप । बता मैं तुझसे क्या शरम करूं। माता - पिता से शरम .करी तो मेरी यह अवस्था हुई । तुझसे शरम करी तो मेरा धर्म नष्ट हुआ।
पिता-बेटी, बता, मैंने तेरे लिये क्या नहीं किया । मैंने