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________________ (६२.) श्री जैन नाटकीय रामायण । - - क्या तुझे. यह नहीं; सुझा कि मैं यह क्या करा रहा हूं। हे भारत माता तु ऐसे लोभी स्वार्थ में अन्धे पुरोहितों को क्यों जन्म देती है? श्रो:समाज के पंचो, तुम लोगों ने मेरे विवाह में. लड्डू कचौड़ी खाये और अपनी. थौंदों पर हाथ फेरा । किन्तु किसी ने मेरे भविष्य की ओर ध्यान नहीं, दिया । तुम लोगों को मेरा यही श्राप है कि तुम्हारी उन थौंदों में कीड़े पड़ें। जो दशा आज.मेरी हो रही है वैसे ही तुम्हें भी कोई आश्रय देने वाला न मिले । माज़ भारत वर्ष में भबलाओं की यह क्या दुर्दशा हो रही है ? समाज हमें पशु समझती है, जिघर चाहती है ढकेल देती है। धन के लालच में मां बाप हमें बूढों से ब्याह देते हैं । हमारे विधवा होने पर समाज हम से.दुराचार करती है । बाद में ठुकराती है और हमें कलंकिणी बना कर हमारे ऊपर थूकती है। क्या कहीं हम भवलाओं का न्याय नहीं है ? गाना आज निर आश्रय हूं मैं, यह क्या मेरी तकदीर है । पेट खाली उघड़ा तन, यह क्या मेरी तकसीर है ॥ ब्याह किया छोटे पती से, मात पित ने हाय मम। थी जवानी मुझमें जब, कैसे बंधे मेरि धीर है ॥
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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