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________________ पू. मी चरित्र है, जहां अनन्त सुखको भोगते हुए सिद्ध परमात्मा बसते हैं। इस तरह तीन लोकका स्वरूप जानकर महाऋषि ण मोहको क्षयकर सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रमई मार्गके द्वारा लोकके जार जो सिद्धालय है उसमें जानेका साधन करते हैं। बोधिदुर्लभ भावना। एकाग्रमन होकर भात्माका अनुभव करना सो बोधि है, इस बोधिका लाम जीवोंको बहुत दुर्लम है यह विवारना बोषि दुर्लभ भावना है। अनादि नित्य निगोदरूप साधारण वनस्पतियोंमें अनंतानंत जीवोंका नित्य स्थान है। अनन्तकाल रहनेपरभी कोई जब कभी वहांसे निकलते हैं / और पृथ्वी, जल, ममि, वायु, प्रत्येक वनस्पतिके किसी तरह जन्म प्राप्त करते हैं। नित्यनिगोदके सम्ब. न्धमें कहा है-- अनंतानंतजीवानां समानादिवनस्पतौ। निःसरंति ततः केचिद्गतेऽनतेऽप्यनेहसि // 14 // भावार्थ-मशुभ कर्मों के कम होनेपर व अज्ञान अंधकारके कुछ मिटनेपर एकेन्द्रियसे निकलकर द्वन्द्रियादि तियेच होते हैं उनमें पर्याप्तपना पाना बहुत कठिन है / प्रायः अपर्याप्त जीव बहुत होते हैं जो एक श्वास (नाड़ी) के अठारहवें भाग मायुको पाकर मरते हैं / इनमें भी पंचेन्द्रिय तियेच होना बहुत कठिन है। मसैनी पंचेन्द्रियसे सैनी पंचेंद्रिय फिर मनुष्य होना बहुत दुर्लभ है ! कदाचित् कोई मनुष्य भी हुमा तब मार्यखण्डमें जन्मना कठिन है। मार्यखण्डमें 208
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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