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जम्बूस्वामी चरित्र सविपाक निर्जरा मिथ्यादृष्टियों के बंत्रपूर्वक होती है । क्योंकि तब मोहका उदय होता है । इसलिये यह निर्जरा मोक्षसाधक नहीं है । सम्यग्दृष्टियों के सविपाक या अविपाक निर्जरा संवर पूर्वक होती है। यह मोक्षकी साधक है । ऐसी निर्जरा मिथ्याह ष्टयों के कभी नहीं होती है । कहा है
इयं मिथ्यादृशामेव यदा स्यादुबंध पूर्विका । मुक्तपे न तदा ज्ञेया मोहोदयपुरःसरा ॥ १२० ॥ सविपाका विपाका वा सा स्यात्संवरपूर्विका । निजरा सुदृशामेव नापि मिथ्यादृशां कचित् ॥१३१॥
मोक्षकी सिद्धि चाहनेवालोंको उचित है कि निर्जराका लक्षण जानकर उस निर्जराके किये सर्व प्रकार उद्यम करके शुद्धात्माका आराधन करें ।
लोक भावना ।
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इस छः द्रव्योंसे भरे लोकके तीन भाग हैं- नीचे वेत्रासन या मोटेके आकार है । मध्य में झालर के समान है, ऊपर मृदंग के समान है, अधोलोक में सात नरक हैं जिनमें नारकी जीव पावके उदय से छेदनादिके घोर दुःख सहन करते हैं । कोई जीव पुण्यके उदयसे ऊर्द्धलोक में स्वर्गौने पैदा होकर सागरोंतक सुख सम्पदाको भोगते हैं । मध्यलोक में तिर्थच व मनुष्य होकर पुण्य व पापके उदय से कभी सुख कभी दुःख दोनों भोगते हैं । लोकके अग्रभाग के ऊपर मनुष्य को ढ ईंद्वीप प्रमणं पैतालीस लाख योजन चौड़ा सिद्धक्षेत्र २०७