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जम्बूस्वामी चरित्र
रहना ही सुंदर है। यदि मैं मृगांकको मना करता हूं तो इसके बलकी लघुता होती है और मैं मृगांकका पक्ष लेता हूं, ऐसा रत्नचून विपक्षीको होगा। यदि मैं रत्नचूलको मना करता हूं तो भी रत्नचूलको घमण्ड होजायगा । रत्नचूल और मृगांक दोनोंने कुमारको नमस्कार किया और रणक्षेत्रमें युद्ध करने लगे। दोनों मोरकी सेनाके योद्धा सावधानीसे लड़ने लगे। चारों प्रकारकी सेना परस्पर भिड़ गई। दोनोंने महंकारमें भरकर राम रावणके समान घोर युद्ध किया । साधारण शस्त्रोंसे युद्ध किये जानेपर कोई नहीं हारा । तब रत्नचूलने क्रोधवान होकर विद्यामई युद्ध प्रारम्भ किया। मृगांक भी विद्यामई युद्धमें सावधान होगया । रत्नचूलने सब सेनामें ऐसी धूला फैला दी कि मृगांककी सेना व्याकुल होगई। तब मृगांकन पवनके शस्त्रमे उस राज्यको उड़ा दिया। तन ममिवाण चलाकर रत्नचूलने सेनामें आग कगादी। तब मृगांकने जलकी वर्षा करके ममिको शांत किया। इस तरह विद्यामई शस्त्रोंसे बहुत देरतक युद्ध हुमा। अंतमें रत्नचूलने नागपाशिसे मृगांकको बांध लिया। अपनेको विजयी मानकर व मृगांकको दृढ़ बंधनोंसे बांधकर रणक्षेत्रसे जाने लगा। तब जम्बूस्वामीने तुर्त मना किया।
हे मूढ़ ! मैं मृगांकके साथ हूं, मेरे होते हुए तू इसे कहां लिये जारहा है ? शेषनागके सिरकी उत्तम मणिको कौन ले सक्ता है? कालके मुखसे कौन अपनेको बचा सक्ता है..? महा मेरु पर्वतको कोन हायसे हिला सक्ता है ? सिंहकी अपापर सोकर कौन
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