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जम्बूस्वामी चरित्र
जब तक जम्बुकुमार भाने मनमें अपने कार्यकी मालोचना कर रहे थे, तब तक लचूलादि गजा इस प्रकार कह रहे थे कि गुण स्वयं निर्गुण होने पर भी मर्थात् गुणमें दूसरा गुण न होने पर भी वे गुण किसी द्रव्यके ही माश्रय पाए जाते हैं । हे स्वामी ! माप बडे गुणवान हैं, भापमें ऐसे गुण हैं जिनका वर्णन नहीं हो सक्ता है। दूसरे लोग परकी सहायतासे जय प्राप्त करने पर भी अभिमानसे उद्धत होजाते हैं। आपने बिना किसीकी सहायतासे केवल अपने ही पराक्रमसे विजय प्राप्त की है तब भी भाप मदरहित व गगरहित हैं। जिस वृक्षमें मामके फल लदे होते हैं वही झुकता है, फलरहित वृक्ष नहीं झुपता है । हे सौम्यमूर्ति भापके समान कौन महापुरुष है जो विजयलाभ करके भी शांत भावको धारण करे ?
इस तरह परस्पर अनेक राजा स्वामीकी तरफ लक्ष्य करके बात कर रहे थे कि इतने में पास्मात् व्योमगति विद्याधर बोल उठाहे स्वामी जम्बूकुमार ! जब माप युद्ध में वीरोंका संहार कर रहे थे तब इस मृगांक रामाने भी अपना पुरुषार्थ प्रगट किया था। आपके सामने हे स्वामी । मैं क्या कह सकता है, भापका पुरुषार्थ तो वीरोंसे प्रशंसनीय है। जैसा मैंने सुना था वैसा मैंने प्रत्यक्ष देख लिया। मृगांककी प्रशंसा सुनकर रत्नचुल क्रोधमें माकर कहने लगा-रस्नचूल इस मिथ्या कथनके भारको सह नहीं सका।
रत्नचूलको अपनी हार होनेसे जितना दुःख नहीं हुआ था, उससे