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जम्बूस्वामी चरित्र
तरफ केरल.देशमें ऐसे लोग रहते थे जिनको विद्याधर कहते हैं। ये लोग भाकाशमै विमानोंपर चढ़के चलते थे। उस समय भी विमानपर चढ़कर चलने की कलाका प्रचार था, ऐसा इस चरित्रसे झलकता है।)
हे स्वामी ! हंसद्वीपका निवासी विद्याधरोंका राजा बड़ा तेजस्वी रत्नचूक नामका विद्याधर है। उसने उस सुंदर कन्याको अपने लिये वरनेकी इच्छा प्रगट की। राजा मृगांकको मुनिराजके वचनोंपर श्रद्धा थी। उसने श्रेणिकको ही देनेका विचार स्थिर करके रत्नचूलकी वात भस्वीकार की । इस बालसे रनचूलने अपना बहुत अपमान समझा, क्रोधित हो गया, मृगांक राजासे वैर बांध लिया, सेनाको सजकर उसने मृगांक के नगरको नाश करना प्रारम्म कर दिया है। उस पापीने मकान तोड़ डाले हैं। धन-धान्यसे पूर्ण व ग्रामोंकी पंक्तियोंसे शोभित ऐसे ऐश्वर्यवान देशको ऊजड़ कर दिया है। बनोंको उखाड़ डाला है, किला भी तोड़ दिया है। और अधिक क्या कहूं, सर्व ही नाश कर दिया है । मृगांक मयसे पीडित होकर अपने किलेके भीतर ठहर कर किसी तरह अपने प्राणों की रक्षा कर रहा है। वर्तमानमें जो वहांकी दशा है सो मैंने कह दी। भागे क्या होगा, उसे ज्ञानीके सिवाय और कौन जान सक्ता है ? मृगांक राजा भी युद्ध में सावधान है। आज व कलमें वह भी अपनी शक्तिके मनुसार युद्ध करेगा।
क्षत्रियोंका यह धर्म है कि जब युद्धमें शत्रुका सामना किया