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जम्बूस्वामी चरित्र
शयन कर रही थी. उसने
एक
स्वम यह देखा कि
एक रात्रिको निमती सुखसे रात्रिके पिछले पहर कुछ स्वम देखे । जामुनका वृक्ष है, फर्कोसे भरा हुआ है, भ्रमर गुंजार कर रहे हैं, देखने से बड़ा प्रिय दीखता है। दूसरा स्वम देखा कि गमिकी ज्वाला जल रही है, परन्तु धूप नहीं निकलता है । तीसरा स्वम चावलका खेत फूला हुआ हराभरा देखा । चौथा स्वप्न कमल सहित सरोवर देखा । पांचवां स्वप्न तरङ्ग सहिल समुद्र देखा । प्रातःकाळ उठकर अपने पतिसे स्वप्नोंका हाल जानकर ईदासको बहुत आनंद हुआ । जैसे मेघों को देखकर मोरली शब्द करती हुई नाचती है वैसे ही सेठका मन हर्षसे पूर्ण होगया । वह उसी समय उठ', स्त्री सहित श्री जिन मंदिरजी गया । वारवार नमस्कार किया। श्री जिनेन्द्रोंकी भले भावों से पूजा की । फिर वह दैश्वराज मुनीश्वरोंको प्रणाम करके स्वर्मो का फल पूछने लगा
हे स्वामी ! आज रातको पिछले भाग में मेरी स्त्रीने कुछ शुभ स्वप्न देखे हैं, भाप ज्ञाननेत्रधारी हैं ! शास्त्रानुसार उनका क्या फक है सो कहिये । तब मुनिराजने कुछ देर विचार किया फिर कहने लगे कि - जम्बूवृक्ष देखनेका फल यह है कि कामदेव समान तुम्हारे पुत्र होगा | प्रज्जलित अभि देखनेका फल यह है कि वह कर्मरूपी ईंधनको जलाएगा । खेत के धान्य देखनेका फलयह है कि वह वक्ष्मीवान् होगा | कमलसहित सरोवर देखनेका फल यह है कि वह भव्यजीवोंके पापरूपी दाहकी संतापको शांत करनेवाला होगा । हे श्रेष्ठी ! समुद्रके दर्शनका फल यह है कि वह ९१
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