________________
जम्बूस्वामी चरित्र
च पद्यमें करने लगा । भगवत् के गुणों का स्मरण किया । स्तुतिके कुछ वाक्य ये हैं- हे देव महादेव ! जय हो, जय हो । केवलज्ञान नेत्रके धारी भगवान की जय हो। आप दया के सागर हैं, सर्व पाणी मात्र के हित कर्तार हैं । हे देवाधिदेव ! आपकी जय हो, जापने घातीय कर्मों का नाश कर दिया है, आपने मोहरूपी योद्धाको जीतकर वीरत्व प्रगट किया है, आप धर्मरूपी तीर्थ के प्रवर्तन करनेवाले हो । हे स्वामी ! आपके समान तीन जगत में कोई शरण नहीं है । हे विभु ! जब तक मैं आपके समान न हो जाऊं, तब तक मुझे आपकी शरण प्राप्त हो । कहा है : -
1
यथा त्वं शरणं स्वामिन्नस्ति त्रिजगतामपि । तथा मे शरणं भूयाद्यावत्स्यां त्वत्समो विभो ॥ ९८ ॥
इस तरह स्तुति करके श्रेणिक राजा अपने नगर में प्रयाण कर गया । घरमें रहते हुए वह श्रेणिक जिनेन्द्रकथित धर्मका पालन करने लगा। यह जिनधर्म, भावकर्म और द्रव्यधर्मका नाश करनेवाला है । जम्बूस्वामीका जन्म |
राजा श्रेणिकको राज्य करते हुए कुछ फाल बीत गया, तब श्री जम्बूस्वामीका जन्म हुआ था । बईंदास सेठ राज्यश्रेष्ठी थे । राज्यकार्य में मुख्य थे । उनकी स्त्री निमती सीता के समान शीलवती, गुणवती व रूपवती थी। दोनों दम्पति परस्पर स्नेह से भीगे हुए सुखसे काल बिताते थे । यद्यपि वे गृहस्थ के न्यायपूर्वक भोग करते थे, तथापि रात दिन जैन धर्म दत्तचित्त थे ।
९०