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जम्बूस्वामी चरित्र
चौथा अध्याय ।
जम्बूस्वामीका जन्म व बालकीड़ा । ( श्लोक १६० का भावार्थ )
सर्व विघ्नोंकी शांति के लिये प्रकाशमान सुपार्श्वनाथको चन्दना करता हूं । तथा चन्द्रमाकी ज्योतिके समान निर्मल यशके धारी श्री चंद्रप्रभ भगवानको मैं नमस्कार करता हूं । चार देवियों के पूर्वभव |
श्रेणिक महाराज विनय पूर्वक गौतम गणधर को पूछने लगे कि इस विद्युन्माली देवकी जो ये चार महादेवियां हैं वे किस पुण्यसे देवगतिषे जन्मी हैं. मेरे संशय निवारणके लिये इनके पूर्वमत्र वर्णन कीजिये | योगीश्वर विनयके आधीन होजाते हैं, इसलिये श्री गौत
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मामीने उनका पूर्वभव कहना प्रारम्भ किया । वे कहने लगे - हे श्रेणिक ! इसी देश में चंपापुरी नामकी नगरी थी, वहां धनवानोंमें मुख्य सुरसेन सेठ था । उस सेठके चार स्त्रियां थीं । उनके नाम थे जयभद्रा, सुभद्रा, धारिणी, यशोमती । इन महिलाओंके साथ यह सेठ बहुत काल तक सुख भोगता रहा, जबतक पुण्यका उदय रहा। फिर तीव्र पापके उदय से सेठका शरीर रोगमई होगया, एक साथ. ही सर्वरोगों का संयोग होगया । कास, श्वास, क्षय, जलोदर, भगंदर, गठिया आदि रोग प्रगट होगए । जब शरीर में रोग बढ़ गए तब शरीस्की धातुएं विशेषरू होगईं। उस सेठ के भीतर अशुभ वस्तुओंकी तीव्र. अभिलाषा पैदा होगई । रोगी होनेसे उसका ज्ञान भी मंद होगया। वह
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