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जम्बूस्वामी चरित्र अपनी स्त्रियोंको मुट्ठीसे व ककड़ीसे मारने कगा। वह दुर्बुद्धि मकस्मात् श्रांतिवान् होगया। मस्तिष्क बिगड़ गया। खोटे दुष्ट वचन कहने कगा-तुम्हारी पास कोई जार पुरुषको खड़े देखा था। फिर कभी देखूगा तो तुम्हारे नासादिको छेद डालूंगा व प्राण ले लूंगा । इत्यादि कर्णभेदी शस्त्र के समान कठोर वचन स्त्रियोंको कहता था, पापके उदय शैद्रध्यानी होगया।
बे चारों बहुत दुःखी हुई अपने जीवनको धिक्कार युक्त मानने लगी। एक दफे वे तीर्थयात्राके लिये घरसे वनमें गई। वहां श्री वारपूज्यम्वामीका महान् मंदिर था, उसको देखकर भीतर जाकर श्री जिनविग्बों के दर्शन करके मानने लगी कि भाज हमारा जन्म सफल हुआ है, आज हम कृतार्थ हुए। वहां मुनिराज विराजमान थे. उनके मुखाविदसे धर्म व धर्मका फल सुना व गृहस्थ श्रावकके व्रत प्रण किये । व्रत लेकर वे घर लौट आई। इतने महापापी सूरसेनका मरण होगया।
ला चारोंने अपना सर्व धन धर्मबुद्धिसे एक महान् जिनमंदिर बनानेसें खर्च कर दिया। फिर वैराग्यवान होकर चारोंने गृहका त्याग करके मार्यिकाके व्रत धारण कर लिये। शास्त्रानुसार उन्होंने तीव्र तप किया। अतः शुभ भावों से पुण्य बांधकर उसी छठे ब्रह्मोत्तर स्वर्गमें देवियां पैदा हुई और इस विद्युन्माली देवकी वे प्राणधारी महादेविणं होगई।
श्रेणिक महाराज इस धर्मकथाको सुनकर बहुत ही प्रमुदित