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जम्बूस्वामी चरित्र
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यह ब्राह्मण महान दुःखी होकर अपना मरण नित्य चाहता था। मरण न होते हुए वह पतंगके समान ममिकी चितापर पड़कर भस्म होगया। अपने पतिके वियोगसे शोकपीडिन होकर सोमशर्मा ब्राह्मणी भी उसीकी चिता भस्म होगई। मातापिता दोनोंके मरनेपर ये दोनो भावदेव व भवदेव मत्यंत दुःखी हुए-शोकके संतापसे तप्त होगए । करुणा उत्पादक शब्दोंसे विलाप करने लगे। उनके निजी बन्धुओंने समभावसे बहुत समझाया तब उन्होंने शोझको छोड़कर मातापिताकी मरणक्रिया की । जैसी ब्राह्मणोंकी रीति है उसके अनुसार तर्पण मादि क्रिया की। फिर शोक वेगों को दर करके वे दोनों ब्राह्मण पहलेके समान अपने घाके कामों में लग गए।
बहुत दिनोंके पीछे उस नगरमें एक सौधर्म नामके मुनिराज -- पधारे, जो धर्मकी मूर्ति ही थे। जो बाहरी व भीतरी सर्व परिग्रहके त्यागी थे, जन्मके बालकके समान नाम स्वरूपके धारी थे, मन, वचन, कायकी गुप्तिसे सन्जित थे, जैन शास्त्रों मर्थमें शंका रहित थे, परन्तु व्रतोंसे कभी च्युत न होजावे इत शंकाको रखते थे, सर्व प्राणी मात्रपर दयालु थे, तथापि कमोंके नाशमें दया रहित थे, मिथ्या एकांत मतके खण्डनमें स्याद्वाद बलके धारी थे, सूर्यके समान तेजस्वी थे, चंद्रमाके समान सोंग शांत थे, मेरू पर्वतके समान उन्नत वधीर थे। वे जैन साधु संसारकी दावानलसे तप्त प्राणियोंको मेघ के समान शांतिदाता थे। भवरूपी चातकोंको धर्मोपदेशरूपी जलसे पोषनेवाले थे. भालस्य रहित थे, इंद्रियों के जीतनेवाले थे, ज्ञान विज्ञानसे पूर्ण थे,