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जम्बूस्वामी चरित्र
। ऐसे मस्तिकाय स्वभाववाले पांच द्रव्य हैं। कालके कायपना नहीं है | काळगुणके एक ही प्रदेश है इसलिये कालद्रव्य मस्तिकाय नहीं है । जितने भाकाशको एक मविभागी पुद्गला परमाणु रोकता है उसको प्रदेश कहते हैं । इस मापसे मापने पर काल सिवाय अन्य पांच द्रव्योंके बहु प्रदेश माप में आयेंगे। इसलिये जीव, फुल, धर्म,
धर्म व आकाश मस्तिकाय हैं। जीव व्यादि पदार्थोंका जैसा उनका यथार्थ स्वरूप है वैसा ही श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । तथा उनको वैसा ही जानना सम्यग्ज्ञान है । कर्मोंके बंधन के कारण भावोंका जिससे निरोध हो वह चारित्र है । इन तीनोंकी एकतासे कर्मोंका नाश होता हैं इसलिये यह रत्नत्रय मोक्षका मार्ग है । सम्यग्दर्शनको सम्यग्ज्ञान से पहले इसलिये कहा गया है कि सम्यग्दर्शनके विना ज्ञानको अज्ञान या मिथ्या ज्ञान कहा जाता है ।
यहां द्रव्यसंग्रहकी गाथा दी है, जिसका अर्थ है - जीवादि तत्वोंका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । निश्वयसे वह भात्माका स्वभाव है । संशय, विमोद, विश्रम रहित ज्ञान तब ही सम्यग्ज्ञान कहलाता है जब सम्यग्दर्शन प्रगट होजावे । सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानपूर्वक ही चारित्र अपना वास्तव कार्य करनेको समर्थ होता है । यदि ये दोनों न हों तो वह चारित्र मिथ्याचारित्र कहलाता है । इन तत्वोंका लक्षण तत्वज्ञानके लिये कुछ माममानुसार कहा जाता है । द्रव्योंमें अस्तित्व आदि सामान्य रवमाव है। तथा ज्ञानादि विशेष स्वभाव हैं ।
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